हर-एक रूह की साँसों पे वज़न देख रहा हूँ
में हर-एक सख्स के हाथों में कफ़न देख रहा हूँ
ई खिरद-मंदों खुदा होने का दावा न करो
में तो इंसान में आदम को भी कम देख रहा हूँ
यह हवाओं में ज़हर और यह बीमार फिजा
काल को जो होना है अंजाम-ए-चमन देख रहा हूँ
यह खुदाओं के लिए क़त्ल-ए-खुद्दै चोर्हो
नस्ल-ए-आदम में तबाही का चलन देख रहा हूँ
रौशनी वालों अंधेरों में भी जीना सीखो
में आफताब के पैरों में थकन देख रहा हूँ
source: net
www.kavyalok.com
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में हर-एक सख्स के हाथों में कफ़न देख रहा हूँ
ई खिरद-मंदों खुदा होने का दावा न करो
में तो इंसान में आदम को भी कम देख रहा हूँ
यह हवाओं में ज़हर और यह बीमार फिजा
काल को जो होना है अंजाम-ए-चमन देख रहा हूँ
यह खुदाओं के लिए क़त्ल-ए-खुद्दै चोर्हो
नस्ल-ए-आदम में तबाही का चलन देख रहा हूँ
रौशनी वालों अंधेरों में भी जीना सीखो
में आफताब के पैरों में थकन देख रहा हूँ
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1 comments:
संजय भास्कर said...
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.