गर्दिश के बाद ज़ात का महवर मिला मुझे,
जिस से निकल गया था में वोही घर मिला मुझे,

ज़र्रे के एक जुजव से खुला राज़-ए-काइनात,
कतरे की वुसा'टन में समंदर मिला मुझे,

कितनी अजीब बात है जो चाहता हूँ मैं,
किस्मत से उस तरह का मुक़द्दर मिला मुझे,

मैं था की केफियात के पर्दों में क़ैद था,
वो था के हर लिहाज़ से खुल के मिला मुझे,

दुनिया की वुसा'टन में तुझे ढूंढता रहा,
लेकिन वो मेरी ज़ात क अन्दर मिला मुझे
Anonymous
अगर हों सके तो कृपा करके वुसा'टन (wussa'ton) मतलब बताये ताकि इसे सही किया जा सके|
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1 comments:

    मनोज कुमार said...

    लाजवाब! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!

  1. ... on October 4, 2010 at 6:29 PM