हमने तुम्हारी याद में ,
खाना पीना छोड़ दिया
तुम तो हमसे भी आगे निकली
जो मूहं धोना ही छोड़ दिया |
***
शायद पढ़ लिया हों उसने,
दिल-हाल-हमारा,
सोचता हूँ बचेगा भी की नहीं,
सिर पर एक भी बाल हमारा |
***
डरते है यदि खुल गया,
राजे दिल का पोल,
तो सभी बजायेंगे सैंडलो से
हमारे सिर पर ढोल |
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खाना पीना छोड़ दिया
तुम तो हमसे भी आगे निकली
जो मूहं धोना ही छोड़ दिया |
***
शायद पढ़ लिया हों उसने,
दिल-हाल-हमारा,
सोचता हूँ बचेगा भी की नहीं,
सिर पर एक भी बाल हमारा |
***
डरते है यदि खुल गया,
राजे दिल का पोल,
तो सभी बजायेंगे सैंडलो से
हमारे सिर पर ढोल |
आनंद
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3 comments:
संजय भास्कर said...
.....बहुत बढ़िया ।
Anonymous said...
hahaha..
yeh bhi khub kahi...
rochak rachnayein.....
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मेरे ब्लॉग पर इस बार थोडा सा बरगद.. इसकी छाँव में आप भी पधारें....
राजभाषा हिंदी said...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें