उन्हें याद कर लेता हूँ अक्सर,
घिरा हूँ जब, महफ़िल में तनहाई से..
शायद आज वों हमारे होते,
जो डरे न होते हम रुशवाई से...
unhe yaad kar leta hun aksar,
ghira hun jab, mahfil me tanhayee se..
shayd aaj vo hamare hote,
jo dare na hote hum rushavayee se...
Please give comment on what you get from poem(story or emotion).
http://anand-tasawwur.blogspot.com/
घिरा हूँ जब, महफ़िल में तनहाई से..
शायद आज वों हमारे होते,
जो डरे न होते हम रुशवाई से...
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ghira hun jab, mahfil me tanhayee se..
shayd aaj vo hamare hote,
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1 comments:
संजय भास्कर said...
उन्हें याद कर लेता हूँ अक्सर,
घिरा हूँ जब, महफ़िल में तनहाई से.
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....