तू लाख इनकार कर ले जबां से,
जितना चाहे छुपा ले जहाँ से,
यह राज खुल जायेगा एक दिन,
तू होगी बाँहों में मेरे, और
मेरे नाम का सिंदूर तेरी मांग में
सज जायेगा एक दिन |
***
हाय तेरे गालों का वों तिल,
जिसने लुट लिया मेरा दिल|
गम नहीं हमे अपने दिल के जाने का
ख़ुशी है तो बस प्यार तेरा पाने का |

2001

Anand

www.kavyalok.com
Please visit, register, give your post and comments.



This entry was posted on 10:07 PM and is filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

3 comments:

    संजय भास्‍कर said...

    Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

  1. ... on October 11, 2010 at 10:23 PM  
  2. परमजीत सिहँ बाली said...

    अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं।

  3. ... on October 12, 2010 at 1:47 AM  
  4. दिगम्बर नासवा said...

    हाय तेरे गालों का वों तिल,
    जिसने लुट लिया मेरा दिल|
    गम नहीं हमे अपने दिल के जाने का
    ख़ुशी है तो बस प्यार तेरा पाने का ..

    क्या बात है आनंद जी .... बहुत उम्दा ...

  5. ... on October 12, 2010 at 4:36 AM